देश में पहली बार अलग ब्लड ग्रुप वाले डोनर से लिवर लेकर एक मरीज में ट्रांसप्लांट किया गया। इस तरह की सर्जरी को एबीओ इन्कम्पैटेबल सर्जरी कहते हैं। हेपेटाइटिस-बी के कारण अफगानिस्तान निवासी 63 साल के मरीज का लिवर फेल हो गया था। सर्जरी के लिए मरीज को भारत लाया गया और द्वारका के एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल में सर्जरी की गई।
12 घंटे चली सर्जरी
सर्जरी डॉ. शैलेन्द्र लालवानी और इनकी टीम ने की। डॉ. शैलेन्द्र का कहना है, एबीओ इन्कम्पैटेबल सर्जरी एक जटिल प्रक्रिया है। इसके लिए अनुभवी एक्सपर्ट, इंफ्रास्ट्रक्चर, चिकित्सीय देखभाल और संक्रमणमुक्त माहौल जरूरी है। मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप एक न होने के कारण ऐसी सर्जरी करनी पड़ी। 12 घंटे चली सर्जरी सफल रही। सर्जरी के बाद रिकवरी में 3 हफ्ते लगते हैं, लेकिन मरीज दो हफ्ते में रिकवर हो गया। कुछ ही हफ्तों में उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
मरीज के 24 साल के बेटे समद ने कहा, मैं अपने पिता की बदौलत ही स्वस्थ जीवन जी पाया हूं। फादर्स-डे के मौके पर पिता को इससे बेहतर तोहफा नहीं दे सकता था। पिता की देखभाल और सर्जरी के लिए हॉस्पिटल की टीम का आभारी हूं।
हॉस्पिटल के डायरेक्टर रमण भास्कर का कहना है, यह मामला नाजुक था और इसके लिए अनुभवी विशेषज्ञ की जरूरत थी। डॉ. शैलेंद्र लालवाणी और उनकी टीम ने सफलतापूर्वक सर्जरी की।
क्या है एबीओ इन्कम्पैटेबल सर्जरी
एबीओ इन्कम्पैटेबल सर्जरी तब की जाती है जब अंगदान करने वाले और अंग प्राप्त करने वाले का ब्लड ग्रुप एक नहीं होता। इस सर्जरी के लिए करीब एक महीने पहले तैयारियां शुरू करनी पड़ती हैं। एंडीबॉडीज का रिएक्शन न हो, इसके लिए सर्जरी से पहले जांचें की जाती हैं। यह भी समझा जाता है कि शरीर में एंटीबॉडीज एक तय लक्ष्य तक बन पाएंगी या नहीं।
सर्जरी से पहले इन 3 प्रक्रिया से गुजरता है मरीज
- पहले राउंड में मरीज को एंटी-सीडी20 दी जाती है ताकि एंटीबॉडी तैयार करने वाले प्लाज्मा सेल का निर्माण रोका जा सके।
- दूसरा चरण बाकी बचे एंटीबॉडी को न्यूट्रिलाइज करने के लिए होता है।
- तीसरे चरण में प्लाज्मा फिल्टर किया जाता है ताकि मरीज के शरीर से एंटीबॉडीज हटाई जा सकें।