महाराष्ट्र में सियासी संघर्ष, झारखंड में आन की लड़ाई: चुनावी रण में बागियों का दांव
महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी बिसात बिछ चुकी है और राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के टुकड़ों में बंटने से मतदाताओं के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि कौन सी शिवसेना असली है और कौन सी एनसीपी वफादार। महायुति ने अपने घोषणा पत्र में 10 गारंटियों की पेशकश की है, लेकिन जरांगे पाटील जैसे नेताओं का "गुरिल्ला युद्ध" राजनीति को और भी पेचीदा बना रहा है।
मराठा आंदोलन से जुड़े जरांगे ने अपने उम्मीदवार खड़े करने का इरादा किया था लेकिन बाद में पीछे हट गए। अब उनका कहना है कि वे लड़ेंगे नहीं, बल्कि हराएंगे। इससे स्पष्ट है कि मराठा बाहुल्य सीटों पर जरांगे किसी खास पार्टी को नुकसान पहुंचाने की रणनीति बना रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका देने वाले जरांगे की नई चाल किस ओर होगी, इसका अंदाजा लगाना कठिन है, लेकिन भाजपा ने "लाडकी बहना" योजना से उनके प्रभाव को कमजोर करने की तैयारी कर ली है।
झारखंड में झामुमो की "मैया" के मुकाबले भाजपा ने "दीदी" के सहारे चुनावी समीकरण साधने की कोशिश की है। नामांकन वापसी की तारीख बीत चुकी है और इस चुनावी मैदान में जरांगे जैसे बागियों के साथ कई अन्य लोग भी मोर्चा संभाले हुए हैं। बागियों की भूमिका चुनाव जिताने और हराने में महत्वपूर्ण होती है और ये अक्सर राजनीति में खेल बदलने का माद्दा रखते हैं।