टोंक (नि.स.)। रियासतकालीन टोंक के पांचवें नवाब सआदत अली खां के राजगायक उस्ताद फैयाज हुसैन खां रागी का लंबी बीमारी के बाद शनिवार सुबह निधन हो गया। उन्होने लगभग 100 साल की उम्र बिताने के बाद अपने पुश्तैनी मकान अरब साहब की मस्जिद ताल कटोरा में अंतिम सांस ली। मरहूम उस्ताद फैयाज हुसैन रागी को कब्रिस्तान मोती बाग में सुपुर्दे खाक किया गया। इस दौरान उनके चाहने वालो सहित कई लोग उनके जनाजे में शमिल हुये। जानकारी के अनुसार राजगायक फैयाज हुसैन खां रागी मेवात घराने से संबंध रखते थे, उनको संगीत कला का हुनर विरासत में मिला था। वर्ष 1952 में मुंबई संगीत समिति द्वारा उन्हें रागी का खिताब प्रदान किया गया था। टोंक में रियासत कालीन नवाबों ने उनको संगीत रत्न, संगीत आजम एवं संगीत का बादशाह जैसे खिताबों से नवाजा गया था, तथा मैसूर के तात्कालीन महाराज ने 1968 में उन्हें ‘‘संगीत रत्न’’ के रूप में सम्मानित किया था। वर्ष 1985-86 में टोंक स्थित अरबी फारसी शोध संस्थान में आयोजित एक संगीत समारोह में उस्ताद रागी की संगीत कला से प्रभावित होकर समारोह में मौजूद ईरान के सफीर ने उन्हें ईरान आने का न्योता भी दिया गया था। उस्ताद फैयाज हुसैन के 6 मई 2001 में टोंक की नागरिक जागृति संस्थान द्वारा मनाये गये जन्मदिन के अवसर पर ‘‘ताज-ए-तरन्नुम’’ के खिताब से नवाजा गया था। मरहूम रागी पिछले कई वर्षो से लकवाग्रस्त होकर उपचार ले रहे थे, लेकिन लंबी बीमारी के बाद जिन्दगी के आखरी वर्षो में गुमनामी एवं मुफ्ïलीसी की जिन्दगी बसर करते हुए शनिवार को प्रात:काल वह इस दुनिया से रूख्सत कर गये। मरहूम रागी ने कहा था कि ‘‘एक चुप सौ को हरा देती है, सबसे मिलिये झुककर ऐ रागी’’। लगभग 100 साल की उम्र में वह अपने पुराने दिन याद करके आंख में आंसू भर लाते थे। स्व. मरहूम रागी को सरकार द्वारा वजीफे के रूप में रकम भी दी जाती थी।फोटो-01-