- स्कूली बच्चे नियमों को ताक पर रख स्कूली बच्चे चला रहे हैं वाहन, ना अभिभावकों को चिंता ओर ना पुलिस प्रशासन को आखिरकार जानबूझकर लापरवाही, अगर हादसा होता है तो जिम्मेवार कौन ?

- स्कूली बच्चे नियमों को ताक पर रख स्कूली बच्चे चला रहे हैं वाहन, ना अभिभावकों को चिंता ओर ना पुलिस प्रशासन को आखिरकार जानबूझकर लापरवाही, अगर हादसा होता है तो जिम्मेवार कौन ?

हम सुधार नहीं पाएंगे ओर ये सुधरेंगे नहीं!

अलवर। जिधर देखें उधर स्कूली व कोचिंग में पढऩे वाले छोटे बच्चे दुपहिया वाहनों पर दौड़ते दिखाई देते हैं ओर तो ओर एक दुपहिया वाहनों पर तीन से चार तक बच्चे बैठकर सरपट वाहन दोैड़ा रहे हैं लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। वरन इस दृश्य को देख अभिभावक तो बहुत खुश है कि उनकेे बच्चे कैसे वाहन दौड़ा रहे हैं लेकिन एक घडी बाद उन्हें नहीं पता कि क्या होगा यदि दुर्घटना घट गई तो......। बस सरकार भी सुस्त ओर प्रशासनिक अधिकारी भी अनदेखी में लगे हैं। जब दुर्घटना हो जाती है तो ये ही बच्चों के अभिभावक सड़कों पर उतर कर हो हल्ला मचाने पर उतर आते हैं लेकिन छोटे बच्चों को दुपहिया वाहन देने से परहेज नहीं करते है।  
देशभर में हर घड़ी सड़क दुर्घटना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस सड़क दुर्घटना को रोकने के लिए सरकार चिंतन में लगी है ओर सरकारी अधिकारी जागरूकता फैलाकर अपने काम को इतिश्री कर शांत बैठ जाते है ना कि कोई सख्त कार्रवाई अमल में लाते हैं।
जब शहर में देखते हैं तो लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरुक करने के लिए सरकार और संस्थाएं रोड सेफ्टी कार्यक्रम चलाती दिखाई देती हैै ओर वहीं दूसरी तरफ सभी नियमों को ताक पर रखकर बिना किसी डर के स्कूल के बच्चे बाइक और स्कूटी दौड़ाते नजर आते हैं ओर वो भी बिना हेलमेट के। शहर में बड़ी संख्या में छोटे छोटे बच्चे बाइक और स्कूटर से स्कूल और कोचिंग जाते हैं, ओर इस दौरान जहाँ भी जगह मिलती है वहीं  अपनी गाडिय़ों को खड़ी कर देते हैं। जिससे स्थानीय लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
लोगों का कहना है कि कई बच्चे तो बड़े साइलेंसर लगे दुपहिया वाहन दौड़ाते हैं जहां ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है साथ मेंं दुर्घटना का भी शत-प्रतिशत अंदेशा बन जाता है। यहां से भी आगे चले तो तेज दुपहिया वाहन चलाते  हुए स्टंट भी दिखाते हैं अब चाहे कुछ भी हो। इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा, पता नहीं।
इस संबंध में जब स्कूल व कोचिंग संस्था चलाने वालों से बात की तो उन्होंने तो सरकार व पुलिस प्रशासन पर कार्यवाही या सजगता के लिए समझाने ओर रोक के लिए जिम्मेदार बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। जब दबाव देकर बात की तो उनका तो यहां तक कहना था कि सुझाव रूप में कि सरकार दुपहिया वाहन चलाने की उम्र को 18 वर्ष से 14 वर्ष तक कर देनी चाहिए कितना हास्यप्रद जवाब दिया कि ये हैं बच्चों के भविष्य को बनाने वाले या बिगाडने वाले।
उधर, जब यातायात पुलिस से बात की तो उन्होंने भी यह कहते हुए टालमटोली कर दी कि हां समय समय पर कार्रवाई करते हैं ओर आगे भी करेंगे लेकिन हकिकत ये है कि यातायात पुलिस के सामने से यही स्कूल व कोचिंग के छोटे बच्चे दुपहिया वाहनों को दौड़ाते निकलते दिखाई देते हैं।
अब इस संबंध में कौन कार्रवाई कर इस देश के बेहतर भविष्य बनाने वाले बच्चों की जिन्दगी को कौन बचाने में अपने कदम बढ़ाएगा ये तो अब अभिभावक, सरकार व पुलिस ही जाने।