संतान की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा अहोई अष्टमी व्रत
जयपुर टाइम्स
मण्डावा। अहोई अष्टमी का व्रत भारतीय संस्कृति में माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा गया। अहोई अष्टमी व्रत माताएं अपनी संतानों की भलाई के लिए पूरे दिन उपवास रख कर कथा सुनकर अहोई माता की पूजा की। इस दिन माता निर्जला रहकर माता स्याही से अपनी संतान की दीर्घायु की कामना की। गणेश चैतन्य महाराज ने बताया कि इस बार अहोई अष्टमी पर कई शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, साध्य योग और अमृत सिद्धि योग बनने से व्रती महिलाओ में भी उत्साह दिखाई दिया। व्रत माताओं के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे वे अपनी संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए पूरे भक्ति भाव से करती हैं। अहोई माता की कथा और पूजा विधि इस व्रत को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। यह व्रत मातृत्व के प्रति सम्मान और त्याग का प्रतीक है,जो भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। अहोई माता पार्वती का ही स्वरूप है जो संतान की लंबी आयु,सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है। अहोई माता को मां पार्वती का रूप माना जाता है। इन्हें संतानों की रक्षा और उनकी लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी पूजा करने से महिलाओं की कुंडली में ऐसे योग बन जाते हैं,जिससे बंध्या योग, गर्भपात से मुक्ति, संतान की असमय मृत्यु होना व दुष्ट संतान योग आदि सभी कुयोग समाप्त हो जाते हैं। धार्मिक कथा के अनुसार,अहोई माता का चित्रण एक अहोई (साही या नेवला) के रूप में किया जाता है, जिसे एक पौराणिक घटना के प्रतीक रूप में देखा जाता है। उन्होंने बताया कि अहोई अष्टमी व्रत के भी कई नियम है। अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला रखा जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं संतान प्राप्ति और माताएं संतान की सुरक्षा के लिए रखती है। इस व्रत में अन्न और फलों का सेवन नहीं किया जाता है। साथ ही इस दिन दूध का और दूध की बनी चीजों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
सूर्योदय के साथ ही अहोई अष्टमी का व्रत आरंभ हो जाता है। व्रत का समापन रात में तारे निकलने के बाद ही होता है। तारो को देखकर अर्घ्य देकर ही व्रत का समापन होता है। तारों को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण किया जाता है।