आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहा हैं तहसील का गांव उडसर, 

आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहा हैं तहसील का गांव उडसर, 


गांव के युवा धनपत सारण की मेहनत ला रही हैं रंग, 
पंचायत उडसर के नाम से बनाई वेबसाइट, 
वेबसाइट पर गांव में बने देसी सामान की देश विदेश तक होती हैं खरीददारी, 
गांव के अनेक लोगों को मिला रोजगार

सरदारशहर। बदलते वक्त के साथ-साथ भारत भी बदल रहा है। बीते कुछ दशकों में हमारा रहन-सहन, जीवन, हमारे काम करने की प्रणाली हर एक चीज में बदलाव देखने को मिला है। अब हम आधुनिक हो गए हैं। हर काम को तेज गति देने के लिए मशीनों का सहारा लिया जा रहा है। हर कुछ डिजिटल हो गया है। टेक्नोलॉजी के इस दौर में यदि आप टेक्नोलॉजी का सहारा नहीं ले रहे तो आप पिछड़़ रहे हैं। ऐसे में अब गांव भी टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण सरदारशहर तहसील का गांव उडसर हैं। गांव उडसर को हम डिजिटल गांव भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां के ग्रामीण अब अपना सामान अपने गांव की वेबसाइट के जरिये विदेशों तक में भेज रहे हैं और अच्छे पैसे कमा रहे हैं। और यह बदलाव आया है गांव के युवा धनपत सारण की सोच के कारण। 


बेरोजगारी का समाधान

पंचायती राज व्यवस्था 1959 में जब लागू हुई थी तब इसका मूल उद्देश्य यही था कि ग्रामीण खुद अपनी अर्थव्यवस्था की योजनाएं बना सके। गांव में कुटीर उद्योग कैसे बढ़े, रोजगार को गांव में कैसे विकसित करें, पशुपालन को कैसे आगे बढ़ाए, कृषि से संबंधित जो प्लानिंग है वह गांव के ग्रामीण खुद करें। इसके अलावा हस्तशिल्प के माध्यम से ग्रामीण रोजगार पैदा करें।  मूल विचार जो पंचायती राज का था वह कहीं ना कहीं अब लुप्त हो गया है और यही वजह है कि तेजी से ग्रामीण शहर की ओर भागने लगे हैं। जिसका नतीजा यह है की हर और विकराल होती बेरोजगारी की चिंता बढ़ रही है। वहीं गांव उड़सर के ग्रामीण आत्मनिर्भर होकर परेशानी का समाधान दे रहे है।  दरअसल ग्राम पंचायत उड़सर के लोगों ने अपने गांव  "पंचायत उडसर" के नाम से एक ऑनलाइन वेबसाइट शुरू की है। इस वेबसाइट के माध्यम से उडसर गांव के ग्रामीण अपने गांव में ही बने सामानों को ऑनलाइन बेच रहे हैं। जिससे न सिर्फ गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है। बल्कि गांव के लोग अब आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इस वेबसाइट के माध्यम से गांव के करीब 25 से 30 लोगों को रोजगार मिल रहा है। जिनमें महिलाएं भी शामिल है। 

वेबसाइट के माध्यम से गांव में ही मिल रहा है रोजगार

यूं तो सदियों से ही हमारे गांव में परंपरा रही है कि हर कारीगरी के कारीगर हमारे गांव में मौजूद हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ-साथ उनकी कारीगरी अब विलुप्त होती जा रही थी। जैसे चारपाई बनाना, पीढ़े बनाना, महिलाओं का घर सजाना इसके अलावा हमारे राजस्थान में खाद्य पदर्थों की भी परंपरा रही है। जिनमें सूखी सब्जियां शामिल है। जिनमें सांगरी, केर, बडी, पापड़, फोफलिया, काचरी, ग्वार फली आदि को सीजन के समय में सुखा लिया जाता है। गाय का देशी घी, जो भी गांव का उत्पाद है जो गांव में बनते हैं। इन सभी चीजों को ग्राम पंचायत उडसर के ग्रामीणों ने अपनी गांव की वेबसाइट पर ऑनलाइन बेचना शुरू किया है।  इसके माध्यम से ना सिर्फ गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है बल्कि लुप्त होती हमारी परंपरा फिर से जीवित हो रही है और हम वही पुराने परिवेश में पहुंच रहे हैं।

गांव के युवा धनपत सारण की हैं इसके पीछे सोच 

गांव में हुए इस क्रांतिकारी बदलाव के पीछे गांव के युवा धनपत सारण की सोच है। आईआईटी के क्षेत्र में काम करने वाले युवा धनपत सारण ने बताया कि एक गांव की जो आवश्यकत थी वह पहले उसी गांव में पूरी हो जाती थी। हमारी कारीगरी के दम पर ही हमारे गांव की अर्थव्यवस्था चलती थी। जीवन यापन के लिए जो भी सामान की हमें आवश्यकता होती थी वह गांव में ही बनाई जाती थी। गांव एक दूसरे से इंडिपेंडेंट थे। वह कारीगर आज भी हमारे गांव में है और उसी कारीगरी को बचाने के लिए विचार कर रहा था। एक आदर्श ग्राम पंचायत कैसे हम अपनी पंचायत को बना सकते हैं यह विचार काफी लंबे समय से मेरे दिमाग में था। जब 2020 में मेरी चाची जी गांव की सरपंच बनी तब मैंने सोचा कि क्यों न कुछ नया अपने गांव में किया जाए जो बाकी ग्राम पंचायतों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर सकें। मोटा आईडिया यह था कि अपने गांव के जो कारीगर हैं उसकी कारीगरी को बचाया जाए साथ ही उस कारीगरी को रोजगार में तब्दील किया जाए। इसी आईडिया से इस वेबसाइट को 2021 में शुरू किया गया था। आज इस साइट के माध्यम से गांव के लोग हैं वह अपने गांव में ही बना सामान दुनिया भर में बेच रहे हैं। इस वेबसाइट को गांव में चलाने वाले राकेश पंडिया ने बताया कि गांव की हमने एक वेबसाइट बना रखी है। "पंचायत उड़सर' नाम  से, और उस वेबसाइट में हम एक सोसाइटी के रूप में काम कर रहे हैं। जैसे ही किसी सामान की मांग हमारी वेबसाइट के माध्यम से हमारे पास आती है। हम उस मांग को पूरा करते हैं। हम सामान का स्टॉक रखते हैं। जैसे सूखी सब्जियां इसके अलावा चारपाई , पीढ़े या फिर घर में सजाने का सामान आदि जैसे ही उनकी मांग आती है हम उन्हें ऑनलाइन भेज देते हैं। 

वेबसाइट के माध्यम से इन सामानों को बेचा जा रहा है ऑनलाइन

पंचायत उडसर नाम से बनी इस वेबसाइट में मुख्य रूप से
1. घर को सजाने का सामान 
इसमें अनेकों प्रकार ऐसे समान है जो सभी हाथ से बने हुए हैं। 

2. खाद्य सामान जिम में शामिल है गाय का देसी घी, सांगरी, केर, बडी, पापड़, फोफलिया, काचरी, गंवार फली आदि सुखी सब्जियां। 

3. महिलाओं से संबंधित सामान्य से चूड़ियां सहित अन्य उत्पाद। 

4. गौशाला के उत्पादन  जिनमे में शामिल है धूप बत्ती, गाय के गोबर से बनी मूर्तियां, खाद, दिपक सहित कई प्रकार के समान। 

5 . फर्नीचर का सामान जिनमें चारपाई, पीढ़े  कुर्सियां, टेबल सहित अन्य सामान सहित इस प्रकार से लगभग 120 प्रोडक्ट इस वेबसाइट के माध्यम से बेचे जा रहे हैं।

अब यू बदल रही है तस्वीर

गांव के 68 वर्षीय दुलाराम ने बताया कि पिछले 50 वर्षों से गांव में ही कच्चे सूत को कातकर उसकी चारपाई बना रहे थे। लेकिन अब इस वेबसाइट से जुड़कर काफी अच्छी कमाई हो रही है। वहीं गांव के गोपीचंद ने बताया कि चारपाई तो हम कई सालों से बना रहे थे। लेकिन सिर्फ अपने घर के लिए ही चारपाई (माचा) बनाते थे। लेकिन अब बाहर बेचने के लिए भी चारपाई बना रहे हैं। इनसे हमें अच्छी इनकम हो रही है और हमारी लुप्त होती कला भी फिर से जीवित हो रही है। हमारे द्वारा बनाई गयी चारपाई का आर्डर अमेरिका से भी आया है। वहीं गांव के शिवकरण सारण ने बताया कि जो हमारी परंपराएं थी वह धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी। जैसे माचे (चारपाई) का चलन बंद हो गया था। इसके अलावा जो नेचुरल सब्जियां थी वह भी धीरे-धीरे गायब होती जा रही थी। यह सभी इस वेबसाइट के माध्यम से बेची जा रही। इससे एक तो गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है साथ ही यह सभी खाने की चीजें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभदायक होती है।सरदारशहर पालिका अध्यक्ष राजकरण चौधरी ने कहा कि में जब इस गांव में गया तो मुझे भी यह जानकर हैरानी हुई कि गांव के लोग गांव में ही बने सामानों को ऑनलाइन बेच रहे है। इससे ना सिर्फ गांव के लोग आत्मनिर्भर बन रहे बल्कि अन्य गांव को भी आत्मनिर्भर बनने का संदेश दे रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत की हम बात करते हैं लेकिन वाकई में गांव उडसर के लोग इसे परिपूर्ण कर रहे हैं।
स्वावलंबन और स्वदेशी के साथ साथ स्थानीय उत्पाद, स्थानीय मार्केट एवं अन्य स्थानीय सम्बन्धों और श्रृंखलाओं को मजबूत करने का काम गांव उडसर के लोग कर रहे हैं। वर्षों पहले भारत के ग्रामीण परिवेश पर अपने विचार रखते हुए गांधी जी ने कहा था “भारत की स्वतंत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतंत्रता होनी चाहिए, और इस स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से होनी चाहिए। तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा। अतः इसके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए। गांधी जी के इसी सपने को साकार आज उडसर गांव के लोग कर रहे हैं। गांधी जी का स्वराज गांव में बसता था और वे ग्रामीण उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थे। खादी को बढ़ावा देना तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार उनके जीवन के आदर्श थे। गांधी जी का कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव को अपने भोजन एवं कपड़े के विषय में स्वावलंबी बनाना है। आज गांव उडसर के ग्रामीण स्वावलंबी बनकर गांधी जी के सपनों के गांव का उदाहरण रख रहे हैं।