खैरथल में जाम की समस्या से कराहने लगे वाहन चालक 

खैरथल में जाम की समस्या से कराहने लगे वाहन चालक 

पैदल चलना भी मुश्किल

खैरथल। जिला बनाने की मांग करने वाले कस्बे में लाइलाज समस्या रोड जाम से अब तो वाहन चालक कतराने लगे हैं। इस समस्या से प्रशासन और जनप्रतिनिधि बखूबी वाकिफ होने के बावजूद इससे निजात दिलाने की दिशा में कोई ठोस उपाय नहीं तलाश पा रहे हैं या फिर तलाशना ही नहीं चाहते हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि एक तरफ जहां रोड जाम से आमजन त्रस्त होता जा रहा है तो दूसरी तरफ़ सभी प्रमुख मार्गों को सकड़ा करने का काम दुकानदारों द्वारा अभियान के रूप में किया जाता रहा है किन्तु क्या मजाल कभी प्रशासन ने इस दुस्साहस को रोकने का साहस दिखाया हो।
सिर्फ एक बार तत्कालीन एसडीएम उम्मेदीलाल मीना द्वारा मेन बाजार जोरदार ढंग से अतिक्रमण की कार्रवाई की गई पक्की तामीरें उनके मालिकों के हाथों से तुड़वा कर आम रास्ते को चौड़ा करने का करिश्मा कर दिखाया था। उसके बाद और ना उससे पहले किसी भी अधिकारी ने ऐसा साहसिक कार्य करके नही दिखाया है। हालात इतने बद से बद्तर बने हुए हैं कि आपातकालीन सेवाओं और बाल वाहिनियों को भी घंटों जाम में फंसे रहना पड़ता है। एंबुलेंस में कोई घायल या बीमार रास्ता खुलने की इंतजार में कराहते रहते हैं तो बाल वाहिनियों में नन्हे - मुन्ने बच्चों को भूखे प्यासे घंटों बसों में बैठे रहना पड़ता है।
रेलवे ओवरब्रिज निर्माण कार्य भी स्वीकृत हो जाने के बाद भी इसे खटाई में पटक दिया है।
ऐसा नहीं है कि प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधिकारी तथा जन प्रतिनिधि इस समस्या से दो - चार नहीं हुए हों। उन्हें भी अनेकों बार इस जाम में फंसे है।
राजस्थान में अशोक गहलोत के पहले मुख्यमंत्री कार्य काल में खैरथल के विधायक ( जेल राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार ) चंद्र शेखर के प्रयास से किशनगढ़ बास रोड से बानसूर रोड तक रेलवे फाटक संख्या 94 से होते हुए बाईपास सड़क निर्माण की योजना बनाई गई और जमीन के स्वामियों को एसडीएम द्वारा नोटिस जारी कर इसे नहीं बेचने के लिए पाबंद किया गया था किन्तु इस योजना के तहत भूमि अधिग्रहण भी नहीं किया जा सका।
उसके बाद वसुंधरा राजे मुख्य मंत्री काल में भी बाईपास रोड बनाने की योजना बनाई गई और फिर गहलोत सरकार में कौशिश हुई और उसके बाद वसुंधरा राजे मुख्य मंत्री काल के आखिरी साल में बाईपास रोड का निर्माण शुरू होता इससे पहले आचार संहिता लागू हो गई। अब जब गहलोत सरकार ने निर्माण कार्य शुरू किया तो रेलवे विभाग ने इससे जुड़े रेलवे फाटक को ही बंद कर वहां रेलवे यार्ड बना दिया। 
 इस तरह से रेलवे ओवरब्रिज निर्माण कार्य स्वीकृत हो जाने के बाद भी इसे खटाई में पटक दिया है।शहर के बीचों - बीच एक मात्र रेलवे फाटक नंबर 93 और उसके समीप घनी आबादी वाले आनन्द नगर के 40 फुट रोड से बेतरतीबी से बना रेलवे अंडरपास काफी सकड़ा होने से यातायात का दबाव झेलने में सक्षम नहीं है। इस पर भी छोटे वाहनों के लिए बने अंडरपास में लोडिंग ट्रेक्टर आदि बड़े वाहन हर समय दुर्घटना को न केवल खुला निमंत्रण दे रहे हैं अपितु आमने - सामने आ जाने पर घंटों जाम लगा देते हैं। ऐसे में वाहन इतने मजबूर हो जाते हैं कि उन्हें दूरी तय कर हनुमान पहाड़ी होते हुए फाटक नंबर 91 से निकलना पड़ता है तो बहुत से दुपहिया वाहन चालक गौरव पथ से होते हुए पुरानी आबादी के शक्कर कुई के पास बरसाती पुल से गुजरते हुए गंतव्य तक पहुंचने की मजबूरी झेलनी पड़ती हैं।अब यदि बाईपास रोड को बंद हुए फाटक से विस्तारित कर वल्लभग्राम वाले फाटक तक विस्तारित कर आगे बढ़ाए जाने के साथ गौरवपथ का सुदृढ़ीकरण कर किरवारी फाटक से जोड़ा जाए और सुभाष नगर के समीप एक और अंडरपास व रेलवे ओवरब्रिज बने तब जाकर जाम की समस्या से निजात मिलेगी।
इसी के साथ ही जरूरी है कि सार्वजनिक निर्माण विभाग, नगरपालिका और राजस्व विभाग की जितनी भी भूमि अतिक्रमण कारियो ने दबाई हुई है उसे सख्ती से मुक्त कराने का अभियान चलाया जाए। अतिक्रमण की गई भूमि अरबों खरबों रुपए मूल्य की है।
पिछले महीनों नगरपालिका के वार्ड पार्षद हरविंदर सिंह यादव द्वारा कुछ खसरा नंबर वाली जमीन को अतिक्रमणकारियों द्वारा दबाए जाने की शिकायत जिला प्रशासन को लिखित में की गई थी तो अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने खैरथल के नायब तहसीलदार को मूल प्रति संलग्न कर जांच कर रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे किन्तु वो आदेश भी हवा हवाई हो गए। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रशासन कितना लचर है।