कर्नाटक हाईकोर्ट जज के विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान
नई दिल्ली, 25 सितंबर 2024: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के जज द्वारा बेंगलुरु के एक मुस्लिम इलाके को "पाकिस्तान" कहने पर कड़ी आपत्ति जताई। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि देश के किसी हिस्से को "पाकिस्तान" कहना भारत की एकता के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है। यह टिप्पणी जस्टिस वी श्रीशनंदा द्वारा की गई थी, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
CJI ने कहा, "आप देश के किसी हिस्से को पाकिस्तान नहीं कह सकते। यह देश की एकता और अखंडता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।" इस विवादित बयान का वीडियो वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की।
सुप्रीम कोर्ट ने दी 3 महत्वपूर्ण सलाह:
जजों को विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके कमेंट किसी समुदाय या व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह न दर्शाएं, खासकर जब वे जेंडर या समुदाय से संबंधित हों।
कोर्ट की कार्यवाही में सभी जज और वकीलों को इस डिजिटल युग में अपनी भाषा और व्यवहार को समय के अनुसार ढालने की जरूरत है।
कोर्ट की प्रक्रिया को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी बनाने की जरूरत है। CJI ने कहा कि कोर्ट में होने वाली कार्यवाही को जनता से छिपाना या दबाना नहीं चाहिए, बल्कि इसे ज्यादा प्रकाश में लाना चाहिए।
इसके बाद जस्टिस श्रीशनंदा ने अपने बयान पर माफी मांगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और इस मामले को बंद कर दिया।
लाइव स्ट्रीमिंग पर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया: सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर चल रहे कुछ कठोर संदेशों का जिक्र किया। इस पर CJI ने कहा कि इसका समाधान यह नहीं है कि कोर्ट की कार्यवाही को बंद कर दिया जाए या दरवाजे बंद कर दिए जाएं। कोर्ट की कार्यवाही में पारदर्शिता होना जरूरी है, क्योंकि इसे सिर्फ कोर्ट में मौजूद लोग ही नहीं बल्कि ऑनलाइन दर्शक भी देख रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कोविड-19 के दौरान लाइव स्ट्रीमिंग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग न्याय प्रक्रिया का अहम हिस्सा बन गई थी और कई हाईकोर्ट्स ने इस उद्देश्य के लिए नए नियम भी बनाए हैं। कोर्ट की कार्यवाही अब केवल कोर्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे लाइव देखने वाले भी होते हैं। इसलिए सभी को यह समझना चाहिए कि न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और ईमानदारी सर्वोपरि हैं।
CJI ने इस बात पर जोर दिया कि न्याय की आत्मा निष्पक्ष और न्यायसंगत होनी चाहिए। हर जज को अपने झुकाव और विचारधारा का ध्यान रखते हुए न्याय का पालन करना चाहिए और संविधान में निहित मूल्यों के आधार पर ही फैसला लेना चाहिए।