नागा साधुओं की अनूठी परंपरा: शाही स्नान से शस्त्रधारी बनने तक का सफर

नागा साधुओं की अनूठी परंपरा: शाही स्नान से शस्त्रधारी बनने तक का सफर

प्रयागराज। कुंभ के दौरान शाही स्नान में शामिल होने वाले नागा साधु भारतीय संस्कृति की एक अद्वितीय धरोहर हैं। 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संप्रदाय के इन साधुओं को दीक्षा के समय गिरी, पुरी, भारती, वन, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती जैसे दस नामों से जोड़ा जाता है। नागा शब्द संस्कृत के ‘नग’ से लिया गया है, जिसका अर्थ पहाड़ों में रहने वाले होता है।  

इतिहास में मुगलों के आक्रमण के बाद नागा साधुओं की शस्त्रधारी शाखा का गठन किया गया। इनका उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था। शुरुआत में केवल क्षत्रिय इस परंपरा में शामिल होते थे, लेकिन समय के साथ जातिगत सीमाएं समाप्त कर दी गईं।  

नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन होती है। साधु बनने के लिए 108 बार पवित्र डुबकी लगाना, खुद का पिंडदान करना और ब्रह्मचर्य की परीक्षा देना अनिवार्य होता है। पुरुष साधुओं की नसें खींचने की परंपरा भी इसका हिस्सा है।  

1888 के कुंभ में नागा साधुओं का वस्त्रहीन जुलूस ब्रिटिश अधिकारियों के बीच चर्चा का विषय बना। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इसे भारतीय परंपरा का सम्मान बताया। आज भी कुंभ में नागा साधुओं को पहला शाही स्नान करने का अधिकार है, जो उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता को दर्शाता है।