रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल द्वारा स्वास्थ परिचर्चा आयोजित

रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल द्वारा स्वास्थ परिचर्चा आयोजित

सीकर।  सीकर में स्टेशन रोड स्थित एक होटल मे सीकर के नागरिकों के लिए एक स्वास्थ परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल के एडिशनल डायरेक्टर हृदय रोग विभाग डॉ. सुनील बेनीवाल एवं मस्तिष्क एवं स्पाइन सर्जन डॉ. संजीव सिंह ने हृदय एवं स्पाइन इंजरी सम्बंधित समस्याओं के बारे में अवगत कराया

इस मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए सीकर शहर के सभी पत्रकारों एवं नागरिकजनो को आमंत्रित किया गया
इस दौरान डॉ. सुनील बेनीवाल ने बताया की हमारा दिल पूरी शरीर के संचालन के लिए एक बहूत आवश्यक अंग है शरीर में खून का संचालन अच्छे से हो इसके लिए ज़रूरी कि हमारा दिल भी अच्छे से काम करें लेकिन बदलती लाइफ़स्टाइल के चलते हम अपने दिल का ध्यान नहीं रखते हैं इसका असर दिल की कार्य क्षमता पर पड़ता है डॉक्टर बेनीवाल ने बताया कि कोलेस्ट्रोल युक्त भोजन से हमारे दिल की कार्य क्षमता पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है कम उम्र में ही लोगों को दिल की बीमारियां घेरने लगी है शारीरिक गतिविधियां कम करने पौष्टिक आहार में कमी तनाव ग्रस्त ज़िंदगी से दिल पर काफ़ी प्रभाव पड़ता हार्ट फेलियर एवं हार्ट अटैक मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है इन्होंने दिल की सेहत बनाने के लिए ख़ूब पैदल चलने पर ज़ोर देखते हुए कहा सुबह वक़ील करने से शुद्ध वायु जाती है जो दिल के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है उन्होंने बताया कि 40- से कम उम्र में हार्ट अटैक का कारण 90 प्रतिशत स्मोकिंग है विभिन्न नवीनतम तकनीकों की जानकारी देते हुए कहा कि हार्ट ब्लॉकेज की सर्जरी अब छोटे चीरे से भी होने लगी है मिनिमल इनवैसिव सर्जरी से मरीज़ प्रोसीजर की 3-4 दिन मे ही अपनी सामान्य दिनचर्या में लौट सकता है एवं डॉ. संजीव सिंह ने कहा कि स्ट्रोक की पहचान में चेहरा टेढ़ा हो जाना, आवाज बदलना, शरीर के एक हिस्से में कमजोरी के साथ ताकत कम हो जाना प्रमुख है । लक्षणों को समझ कर बिना समय गंवायें डॉक्टर को दिखाना जरूरी है । उन्होंने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के दो प्रकार हैं, खून की नस के बंद होना या फिर खून की नस के फटना। खून की नस के फटने वाले स्ट्रोक में सर्जरी कर जान बचाई जा सकती है। डॉक्टर संजीव सिंह ने बताया की भारत में मृत्यु के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है स्ट्रोक ब्रेन स्ट्रोक भारत में रोगियों की मृत्यु का चौथा, व डिसेबिलिटी का पाँचवा सबसे बड़ा कारण है । लकवा ग्रस्त मरीज का समय पर ईलाज न होने पर ब्रेन की उम्र 35 से 40 साल तक बढ़ जाती है यानि जो दिक्कते मरीज को वृद्धावस्था में आनी चाहिए जैसे की याददाश्त एवं सोचने की क्षमता में कमी, बोलने में दिक्कत आदि वो लकवे के तुरंत बाद ही शुरू हो जाती है । समय रहते यदि इलाज शुरू कर दिया जाए तो स्ट्रोक पर काबू पाया जा सकता है।
हॉस्पिटल की ओर से दीपेश अग्रवाल एवं शिवपाल ने बताया कि आम जन मे जागरूकता बढ़ाने के लिये इस तरह के प्रोग्राम का आयोजन अलग अलग शहरों में निरंतर रूप से किया जाता हैं।