सीकर में कोचिंग संस्थानों के कारण डिप्रेशन और आत्महत्या: एक गंभीर समस्या

सीकर में कोचिंग संस्थानों के कारण डिप्रेशन और आत्महत्या: एक गंभीर समस्या


-शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बने शहर में आत्महत्या के मामले लगा रहे प्रश्न चिन्ह, अभिभावकों में भय व्याप्त
सीकर। प्रदेश में कोटा के बाद अब सीकर में कोचिंग संस्थान विद्यार्थियों के आत्महत्या के मामले में चर्चाओं में है। मरूधरा में शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बना शहर अब कोचिंग संस्थानों में आत्म्हत्या के बढ़ रहे मामलों से बदनाम हो रहा है। इन कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे विद्यार्थियों में डिप्रेशन इस कदर हावी हो रहा है कि अब यहां विद्यार्थियों के आत्महत्या करने के बढ़ते मामले सामने आ रहे है। कोचिंग संस्थानों में डिप्रेशन की समस्या अब विकराल रूप लेती जा रही हैए और इसके चलते बच्चों की आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में लाल बहादुर शास्त्री स्कूल के एक १२वीं कक्षा के छात्र ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली। यह छात्र पिछले चार साल से स्कूल के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था। उसने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इस घटना के बाद परिजनों ने स्कूल प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके अनुसार छात्र के साथ स्कूल में मारपीट की गई थी, जिससे आहत होकर उसने आत्महत्या की। यह आरोप न केवल स्कूल प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हैं, बल्कि कोचिंग संस्थानों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी को भी उजागर करते हैं। उद्योग नगर थाना पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और सत्यता का पता लगाने में जुटी है।
वहीं, दूसरी ओर उद्योग नगर थाना क्षेत्र में रॉयल रेजिडेंसी नवलगढ़ रोड पर रहने वाला अजय कुमार जो मैट्रिक्स हाई स्कूल का ११वीं कक्षा का छात्र हैए घर से लापता हो गया है। पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर उसकी तलाश शुरू कर दी है। इस घटना ने भी परिजनों और स्थानीय निवासियों के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया है।

सीकर में हो रही इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे शिक्षा प्रणाली और कोचिंग संस्थानों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव डालने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। हमें यह समझना होगा कि केवल अच्छे अंक और मेरिट लाना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं हैए बल्कि बच्चों का संपूर्ण विकास और उनका मानसिक स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है।

इन घटनाओं ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारी शिक्षा प्रणाली वास्तव में बच्चों के भविष्य को उज्जवल बना रही है, या फिर उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर कर रही है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना अब समय की मांग है। स्कूल प्रशासन, शिक्षकों और माता-पिता को मिलकर इस दिशा में प्रयास करने होंगे ताकि भविष्य में ऐसी दुखद घटनाएं न हों।
कोचिंग हब बनने की राह पर तेजी से बढ़ रहे सीकर में हाल ही में दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली जिसके कारण न केवल प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे है बल्कि आमजन के जेहन में भी यह सवाल तेजी से हिलोरें मार रहा है कि अब सीकर भी कोटा की राह पर चल पड़ा है।
सीकर में गाइडलाइन दरकिनार, नियमों की नहीं हो रही पालना:
सीकर पूरे प्रदेश में कोटा की तर्ज पर ही शिक्षा के क्षेत्र में नामचीन शहर बन गया है। यहां नीट और आईआईटी की तैयारी कराने वाले बड़े इंस्टीटï्यूट है। नीट और मेडिकल की तैयारी में विद्यार्थी पर दबाव रहता है। एक तरफ तो घर वालों की अपेक्षा रहती है कि छात्र अच्छें अंक लाए, इसलिए उनका दबाव रहता है और दूसरी तरफ कोचिंग इंस्टीट्यूट का भी दबाव विद्यार्थियों पर रहता है जिसके कारण विद्यार्थी आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते है। अभिभावकों के मुताबि कोचिंग संस्थानों और हॉस्टलों में पढऩे वाले विद्यार्थियों पर मानसिक दबाव नहीं डाला जाए और उन्हे स्वस्थ माहौल प्रदान किया जाए तो इन आत्महत्याओं के मामलों को रोका जा सकता है और शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बने शहर को कोटा बनने से रोका जा सकता है। अभिभावकों की राय के अनुसार यहां पढऩे वाले विद्यार्थियों से ली जाने वाली मोटी फीस पर भी नियंत्रण जरूरी है क्योंकि अभिभावक विद्यार्थी को मेडिकल शिक्षा में पढ़ाने के लिए भारी भरकम फीस का कर्ज लेकर वहन करते है लेकिन इस भारी भरकम फीस देने के कारण स्वत: ही विद्यार्थी पर नैसर्गिक दबाव आ जाता है कि यदि अच्छा परिणाम नहीं आया तो घर वालों का क्या होगा। 

अंत में, हमें यह समझना होगा कि बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सर्वोपरि है। उन्हें प्यार, समझ और सहयोग की आवश्यकता है, न कि अत्यधिक दबाव और प्रतिस्पर्धा की। केवल तभी हम एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां बच्चे निडर होकर अपने सपनों की उड़ान भर सकें।