महिला सशक्तीकरण की मिसाल: 30 लूम से बदल रहे 100 से अधिक महिलाओं के जीवन, आर्टिजन से बन रहीं आर्टिस्ट 

महिला सशक्तीकरण की मिसाल: 30 लूम से बदल रहे 100 से अधिक महिलाओं के जीवन, आर्टिजन से बन रहीं आर्टिस्ट 

जयपुर। विराटनगर तहसील के मासिंघका बास गांव में महिलाओं ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि अपने परिवारों को भी आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त किया है। जयपुर रग्स द्वारा लगाए गए 30 लूम्स पर काम करके 100 से अधिक महिलाएं आर्टिजन से आर्टिस्ट बनने की राह पर हैं। यहां की महिलाएं अपने हुनर से अपने परिवारों की तस्वीर और तकदीर बदल रही हैं।  

मंजू देवी की कहानी 
कैला का बास की मंजू देवी ने गरीबी और सीमित संसाधनों के बावजूद गलीचा बुनाई का हुनर सीखा। शादी के बाद ससुराल में इस हुनर को जारी रखा। जयपुर रग्स की लूम्स से काम मिला और आय बढ़ी। उन्होंने अपने पति को पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं में सहयोग दिया, जिससे वह दिल्ली पुलिस में चयनित हुए। उनके बेटे अनीस ने भी मां की कमाई से आईआईटी में दाखिला लिया और सफलता हासिल की।  

मेवा देवी और नीलम की कहानी 
सास-बहू की इस जोड़ी ने गलीचा बुनाई के जरिए परिवार को आर्थिक स्थिरता दी। नीलम ने पति की पढ़ाई पर ध्यान दिया, जिससे वह अध्यापक बने। अब उनकी बेटी नवोदय विद्यालय में पढ़ाई कर रही है। मेवा देवी अपने छोटे बेटे को भी तैयारी करवा रही हैं।  

कृष्णा देवी की कहानी
प्रतापगढ़ के पास आगर गांव से आई कृष्णा देवी ने गलीचा बुनाई का कौशल अपने पीहर में सीखा। शादी के बाद ससुराल में उन्होंने लूम पर काम शुरू किया। उनका कहना है कि खुद पढ़ाई नहीं कर पाईं, लेकिन बेटियों को पढ़ा रही हैं। उनकी बड़ी बेटी एमए और बीएड कर चुकी है, जबकि छोटी बेटी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है।  

महिला सशक्तीकरण की मिसाल
गांव की इन महिलाओं ने गलीचा बुनाई के माध्यम से आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की है। उनका योगदान न केवल उनके परिवारों के लिए आर्थिक स्थिरता लाया है, बल्कि बेटियों और बेटों की शिक्षा व उज्ज्वल भविष्य को भी सुनिश्चित किया है। जयपुर रग्स के सहयोग से यह महिलाएं समाज में सशक्त भूमिका निभा रही हैं।