कॉटन का क्षेत्र बनता जा रहा हैं हब, 1500 हैक्टीयर में इस बार होगी बुआई, तापमान सही रहने पर किसानों का बढ रहा है इस खेती के प्रति रूझान
सरदारशहर। चूरू जिले का सरदारशहर अब धीरे-धीरे कॉटन का हब बनता जा रहा है। ऐसे में इस बार कम तापमान होने के कारण किसानों का रूझान बीटी-कॉटन के प्रति बढता जा रहा है। आपको बतादे कि सरदारशहर इलाका धीरे-धीरे कॉटन का हब बनाता जा रहा है। इनसे पहले पड़ोसी जिला हनुमानगढ, श्रीगंगानगर आदि इलाके में यह खेती ज्यादा होती थी। नायब तहसीलदार प्रहलादराय पारीक ने बताया कि पिछली बार इस इलाके में 1250 हैक्टेयर यानी 20 हजार बीगा में खेती की गई थी। लेकिन इस बार मौसम में कम तापमान होने के कारण किसानों को रूझान धीरे-धीरे बढता जा रहा है। बताया जा रहा है कि इस बार 1500 हैक्टीयर से ज्यादा कॉटन की खेती की जायेगी। चूरू कृषि विभाग के सयुक्त सहायक निदेशक डॉ अजीतसिंह ने बताया कि कॉटन की सघन खेती में कतार से कतार 45 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी पर लगाये जाते है। इस प्रकार एक हेक्टेयर में 1,48,000 पौधे लगते है। बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। इससे 25 से 50 प्रतिशत की उपज में वृद्धि होती है।
कपास की खेती के लिए सही है मौसम
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ अजीत सिंह ने बताया कि कॉटन की फसल लंबी अवधि की फसल है। कॉटन के लिए स्वच्छ, गर्म और शुष्क जलवायु अनुकूल होती है। कपास के बीजों के अंकुरण के लिए आवश्यक तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस और आगे बढ़ने के लिए 20 से 27 डिग्री सेल्सियस होता है। कॉटन के लिए न्यूनतम और अधिकतम तापमान 15 से 35 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता 75 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। इस प्रकार का मौसम गर्म दिनों और ठंडी रातों को अच्छी तरह से भरने और उबालने के लिए उपयुक्त होता है।
कॉटन की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए मिट्टी
सरदारशहर कृषि विभाग के सहायक कृषि अधिकारी कृष्णकुमार सारण ने बताया कि इस खेती में सही मिट्टी का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि कॉटन की फसल लगभग छह महीने तक खेत में रहती है। कपास की खेती के लिए काली, मध्यम से गहरी (90 सेमी) और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चयन करें। कपास को उथली, हल्की खारी और दोमट मिट्टी में लगाने से बचें। पोषक तत्वों की उपलब्धता और मिट्टी की सतह के बीच संबंध के कारण मिट्टी की सतह लगभग 6 से 8.5 होनी चाहिए।
कॉटन की खेती की कैसे करे बूवाई
सिंचित गैर-बीटी कपास की समय पर बुवाई आवश्यक है। देर से बिजाई करने से बिक्री के समय बारिश या कीटों और बीमारियों के प्रकोप के कारण नुकसान हो सकता है। बिजाई के तुरंत बाद 4 से 6 इंच की छिद्रित पॉलीथीन की थैलियों में मिट्टी और कम्पोस्ट या खाद भरकर भरपूर पानी दें। फिर प्रत्येक बैग पर 2 से 3 बीज रोपें। इन थैलियों का उपयोग अंतराल को भरने के लिए किया जाना चाहिए। तब तक बैगों को कीड़ों से बचाने के लिए पेड़ की छाया में रखें और उन्हें बार-बार पानी दें। आम तौर पर एक एकड़ हल भरने के लिए 250 से 300 बोरे पर्याप्त होते हैं।