अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई आयोजित
नीमकाथाना/सुनीता शर्मा
आज नीमकाथाना के अग्रसेन भवन में अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, यह राष्ट्रीय संगोष्ठी 28 व 29 दिसंबर, दो दिवसीय रहने वाली है।
इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री प्रेम सिंह बाजोर, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर, क्षेत्रीय अध्यक्ष अन्नाराम शर्मा, जयपुर प्रांत के अध्यक्ष ओपी भार्गव ने हिस्सा लिया,
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए पूर्व मंत्री श्री प्रेम सिंह बाजोर ने बताया कि आजादी के पश्चात भी भारतीय साहित्य में जो सुधार की आवश्यकता थी वह नहीं की गई, अंग्रेजों द्वारा जो साहित्य पढ़ाया जा रहा था वही साहित्य आजाद भारत में भी पढ़ाया गया, इस साहित्य में सुधार की गुंजाइश थी जो कि तात्कालिक सरकार ने पूरी नहीं की।
राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने आजादी के स्वतंत्रता संग्राम पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अट्ठारह सौ सत्तावन जो स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया उसे 1857 का गदर कह कर संबोधित किया गया, पहली बार वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक में अट्ठारह सौ सत्तावन स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र किया, आने वाले समय में देश के साहित्यकारों को देश हित का साहित्य लिखकर प्रकाशित करवाना चाहिए।
क्षेत्रीय अध्यक्ष अन्ना शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो दिवस में साहित्य की भूमिका पर चिंतन व मनन करते हुए हमें स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में साहित्यकारों के योगदान के बारे में विचार करना चाहिए।
जयपुर प्रांत अध्यक्ष ओम प्रकाश भार्गव ने दो दिवसीय रहने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठी के क्रियाकलापों पर चर्चा की, नीमकाथाना इकाई के अध्यक्ष विमल भारद्वाज ने उद्घाटन सत्र में आए हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया, प्रांत संगठन मंत्री जगदीश प्रसाद माली ने कार्यक्रम का संचालन किया।
उद्घाटन सत्र में प्रांत संगठन मंत्री जगदीश माली की पुस्तक "भारत के स्वाधीनता आंदोलन में साहित्य की भूमिका" का विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया।
उद्घाटन सत्र के अंत में अतिथियों को स्मृति चिन्ह भी भेंट किए गए।