मंडे मेगा स्टोरी: रावण को क्यों कहते हैं पहला कांवड़िया; 1858 में अंग्रेज अफसर ने देखी थी कांवड़ यात्रा, अब हर साल 6 करोड़ लोग होते हैं शामिल

सावन का महीना आते ही उत्तर भारत की सड़कों पर भगवा रंग का सैलाब उमड़ पड़ता है। कांवड़ यात्रा आज देश की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? पहला कांवड़िया कौन था? और यह यात्रा इतनी लोकप्रिय कैसे हो गई?
माना जाता है कि रावण, जो शिवभक्त था, पहला कांवड़िया था। वह कैलाश से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाता था। यही परंपरा आज करोड़ों लोग निभाते हैं। 1858 में अंग्रेज अफसर एडवर्ड गेजेट ने अपने यात्रा विवरण में हरिद्वार से कांवड़ यात्रा का उल्लेख किया था, जहां लोग गंगाजल लाकर गांवों के शिव मंदिरों में चढ़ाते थे।
उस दौर में यह यात्रा सीमित भक्तों द्वारा साधारण तरीकों से की जाती थी। लेकिन 1990 के बाद इसने विशाल धार्मिक उत्सव का रूप ले लिया। आज यह यात्रा केवल आस्था नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता का प्रतीक बन गई है।
इस साल करीब 6 करोड़ कांवड़ियों के यात्रा में शामिल होने का अनुमान है। हाईवे से लेकर गांव की पगडंडियों तक हर ओर 'बोल बम' के जयकारे सुनाई देते हैं। आधुनिक व्यवस्थाएं, बढ़ते सुरक्षा इंतजाम और प्रशासनिक सहयोग के चलते यह यात्रा अब एक भव्य आयोजन बन चुकी है।
कांवड़ यात्रा न केवल शिवभक्ति की मिसाल है, बल्कि यह भारत की जीवंत लोकपरंपराओं और श्रद्धा की शक्ति का भी परिचायक बन चुकी है।