परी माता मंदिर में उमड़ी आस्था
मेले में महिलाओं ने खरीदारी का उठाया लुत्फ़
खैरथल। कस्बे की पुरानी आबादी स्थित विश्व के इकलौता मंदिर परी माता मंदिर में बैसाख माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को भरने वाले मेले में भीड़ उमड़ी।बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने माता मंदिर में पहुंच कर माता के दर्शन किए। नए अनाज के साथ बच्चों को ढोक दिलवाई।
मंदिर के पास रहने वाले नगरपालिका खैरथल के पार्षद नारायण छंगाणी ने बताया कि मेले में श्रद्धालुओं को कोई तकलीफ़ न हो, इसे लेकर स्थानीय लोगों ने सेवादार के रूप में तैनात हो जाते हैं। लोगों ने अपने स्तर पर बच्चों को दूध, पानी व भोजन की व्यवस्था की। मेले में स्वयंसेवकों ने पूरी निगरानी बरती। स्थानीय पुलिस भी मुस्तैद रही। महिला पुलिस कर्मी भी तैनात की गई। इस मेले में सभी धर्मों व समाजों के लोग परी माता मंदिर में पहुंचे। मेले में मत्स्यांचल के अलावा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे दूर दराज से पहुंचे।
क्या है आस्था का राज -- परी माता मंदिर में किसी भी तरह की कोई मूर्ति नहीं है और ना ही कोई पावन ज्योति प्रज्ज्वलित हैं। परी वाली हवेली के नाम से विख्यात इस भवन में प्रवेश करने पर बांई तरफ एक कमरा ही परी माता मंदिर है। इसका कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है किन्तु सैकड़ों वर्षों से इस जगह पर देश के कौने - कौने से श्रद्धालु शुक्ल पक्ष के बुधवार व शनिवार को बड़ी संख्या में लोग अपने नन्हें मुन्ने बच्चों को व विवाह से पूर्व और बाद में वर वधु को जात ( ढोक दिवाने ) आते हैं। ऐसी अटूट मान्यता है कि ढोक दिवाने पर सब - कुछ मंगल ही मंगल होगा। यहां सब - कुछ स्वत: ही होता आया है,ना कोई मंदिर प्रबंधन समिति है और ना ही किसी भी तरह का कोई प्रचार प्रसार किया जाता है। आस्था रखने वालों के बड़े बुजुर्ग अपने परिवार के बच्चों व विवाह योग्य युवक - युवतियों को ढोक दिवाने भेजते हैं।
मान्यता है कि छोटे बच्चों को उल्टी,दस्त सहित कई रोग माता मंदिर में जात लगाने से ही दूर हो जाते हैं। शादी से ठीक पहले रिश्ता तय होते ही माता को जात दिलाने पहुंचे। स्वयंसेवकों ने बताया कि परी माता मंदिर में रात्रि दो बजे से श्रद्धालुओं का आना शुरू हुआ जो करीब दोपहर बारह बजे तक अनवरत चलता रहा।
लोगों की सेवार्थ जगह - जगह ठंडे शरबत, ठंडाई आदि की व्यवस्था की। व्यवस्था में पुष्करणा समाज के लोगों सहित परवेज आलम, हरीश कुमार,भगत सिंह, महेन्द्र मास्टर, ओमप्रकाश, डॉ सुरेश वासु समेत कई लोगों ने व्यवस्था में सहयोग किया।
ये होता है चढ़ावा : परी माता के ढोक दिवाने आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा जो प्रसाद चढ़ाया जाता है उसमें एक मिट्टी का थाली नुमा बर्तन, गेंहू, नारियल, चूड़ियां, तिलक, रोली मोली, सिंदूर, मेंहदी आदि होता है,जिसे पुड़ा बोलते हैं।