पाली में बिजली विभाग के कर्मचारी की बिजली चोरी का मामला: ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ नारे पर सवाल, विभागीय मिलीभगत से लाखों का राजस्व नुकसान

पाली में बिजली विभाग के कर्मचारी की बिजली चोरी का मामला: ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ नारे पर सवाल, विभागीय मिलीभगत से लाखों का राजस्व नुकसान

पाली, 24 सितंबर। पाली जिले में बिजली विभाग के एक कर्मचारी द्वारा बिजली चोरी का गंभीर मामला सामने आया है, जिसने राज्य की सत्ताधारी पार्टी और विभागीय अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला तब उजागर हुआ जब एक कर्मचारी भरत कुमार पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने घर पर मीटर जलने के बाद अवैध रूप से सर्विस लाइन से छेड़छाड़ कर बिजली चोरी की। इस घटना ने न केवल विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं बल्कि राज्य सरकार के ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के नारे पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है।

कैसे हुआ मामला उजागर?

पाली जिले के सुमेरपुर विद्युत विभाग में कार्यरत भरत कुमार, जो पिछले 15 वर्षों से इस पद पर बने हुए हैं, पर आरोप है कि उनके घर पर मीटर जलने के बाद, उन्होंने सर्विस लाइन से छेड़छाड़ कर अवैध रूप से बिजली का उपयोग किया। यह मामला तब सामने आया जब स्थानीय लोगों ने इस चोरी की जानकारी दी। इसके बाद आनन-फानन में रविवार के दिन, जो कि अवकाश का दिन था, उनके घर पर नया मीटर लगा दिया गया। इस घटना ने शहर में हड़कंप मचा दिया और चर्चा का विषय बन गई।

मंत्री के नारे पर उठे सवाल

इस घटना को लेकर भारतीय किसान मजदूर यूनियन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यप्रकाश पटेल ने राज्य सरकार और अधिकारियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “जब पाली जिले के कैबिनेट मंत्री ने शपथ ली थी, तो उन्होंने ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ का नारा दिया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी नाक के नीचे एक कर्मचारी बिजली चोरी करते हुए सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान पहुंचा रहा है। यदि इस कर्मचारी की जगह कोई आम आदमी होता, तो उसे लाखों रुपये का जुर्माना भरना पड़ता। यह बेहद शर्मनाक है कि सरकार और विभागीय अधिकारी अब तक इस कर्मचारी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाए हैं।”

विभागीय मिलीभगत या लापरवाही?

सुमेरपुर डिस्कॉम कार्यालय में इस घटना के बाद विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आम जनता के लिए बिजली चोरी एक बड़ा अपराध है, जिसके लिए उन्हें भारी जुर्माना और सजा का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब खुद विभाग के कर्मचारी इस अपराध में लिप्त होते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने में विभागीय अधिकारी असमर्थ दिखते हैं।

सूत्रों के अनुसार, भरत कुमार पिछले 5 वर्षों से अवैध रूप से बिजली की चोरी कर रहे थे। उनके घर पर लगे मीटर के जलने के बाद उन्होंने सर्विस लाइन से छेड़छाड़ कर अपने घर को रोशन किया। जब चोरी की भनक लगी, तो रविवार के दिन, जो कि कार्यालय का अवकाश होता है, तुरंत मीटर बदल दिया गया ताकि चोरी का आरोप उन पर न लगे। यह घटना विभागीय मिलीभगत का स्पष्ट संकेत देती है।

बकाया बिल और विभागीय उदासीनता

भरत कुमार पर करीब 40,841 रुपये का बिजली बिल बकाया है, लेकिन इसके बावजूद अब तक उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। आम उपभोक्ता यदि बिजली बिल समय पर नहीं भरते, तो उनका कनेक्शन तुरंत काट दिया जाता है। लेकिन इस मामले में विभागीय अधिकारियों की उदासीनता और भ्रष्टाचार साफ नजर आ रहा है।

यह स्थिति न केवल विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि विभाग के नियम सिर्फ आम जनता पर ही लागू होते हैं, जबकि कर्मचारी और अधिकारी इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

इस मामले को लेकर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा जिला महामंत्री पूनम सिंह परमार ने कहा, "यदि यह मामला सही है, तो विद्युत विभाग को जांच कर उचित कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।" वहीं, कांग्रेस जिला अध्यक्ष अजीज दर्द ने इस घटना को मंत्री के गृह क्षेत्र के लिए शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा, "मंत्री जी को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और दोषियों से वसूली करवाई जानी चाहिए।"

भारतीय किसान मजदूर यूनियन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यप्रकाश पटेल ने भी इस घटना पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक कर्मचारी बिजली चोरी कर रहा है और विभाग कुछ नहीं कर रहा। यदि यही मामला किसी आम नागरिक का होता, तो उसे लाखों रुपये का जुर्माना भरना पड़ता। राज्य सरकार और मंत्री महोदय से मेरी मांग है कि इस कर्मचारी से चोरी की गई बिजली की आर्थिक वसूली की जाए और सरकार को हुए नुकसान की भरपाई की जाए।"

विभागीय अधिकारी क्या कहते हैं?

इस मामले पर जब विद्युत विभाग के सहायक अभियंता अशोक कुमार मीणा से पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "मेरे संज्ञान में यह मामला नहीं था, लेकिन अगर ऐसा हुआ है, तो विजिलेंस विभाग को पत्र लिखकर जांच करवाई जाएगी।" वहीं, कर्मचारी भरत कुमार ने कहा, "मेरे घर पर मीटर के कांटेक्ट जल गए थे, इसलिए मीटर बदलवाया गया है। बाकी जो बातें कही जा रही हैं, वे झूठी हैं।"

भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी

इस घटना से यह स्पष्ट हो जाता है कि सुमेरपुर विद्युत विभाग में भ्रष्टाचार गहराई तक फैला हुआ है। वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ कर्मचारी न केवल विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, बल्कि अपनी मनमर्जी से बिजली चोरी जैसे गंभीर अपराध कर रहे हैं।

आखिरकार, यह घटना सवाल उठाती है कि क्या विभागीय अधिकारियों में इतनी हिम्मत है कि वे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठा सकें? क्या राज्य सरकार और विद्युत विभाग इस कर्मचारी से चोरी की गई बिजली की वसूली कर सकेगा और जनता का विश्वास बहाल कर सकेगा?

निष्कर्ष

पाली जिले में हुए इस बिजली चोरी के मामले ने न केवल विद्युत विभाग की कार्यशैली को बेनकाब किया है, बल्कि राज्य सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी नारे पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि इस मामले में विभागीय अधिकारी और राज्य सरकार क्या कदम उठाते हैं और क्या इस कर्मचारी से चोरी की गई बिजली की वसूली कर पाई जाएगी?